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कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा आज का भारत सबसे बड़ी 'कर्जदार' जानिए कौन सरकार
देश में हर दिन औसतन 19 लोग कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। जबकि करोड़ों आम लोग अपनी इनकम पर टैक्स देते हैं। करोड़ों मध्य वर्ग के लोग, नौकरी पेशा लोग, छोटे व्यवसायी और किसान जब घर की जरूरत की चीजों को खरीदते हैं, तब उस पर भी मोटा जीएसटी देते हैं। मोटरसाइकिल, बच्चों को पढ़ाने, घर में बिटिया की शादी और बड़ी मेडिकल इमरजेंसी जैसी जरूरतों के लिए उन्हें मोटी ईएमआई पर बैंकों या मोटे ब्याज पर निजी साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है। आपकी कर्ज की एक किस्त छूट जाए तो फोन पर, दरवाज़े पर वसूली एजेंटनुमा गुंडे भेजे धमकाने चले आते हैं और 2-3 किस्त छूट जाने पर तो घर-जमीन-खेत पर नोटिस लग जाती है। लेकिन आपके ही टैक्स के पैसे से बड़े-बड़े पूँजीपतियों का कर्ज माफ होता है और न तो उनके घर कर्ज
बच्चों की शिक्षा, मेडिकल, शादी और अन्य कामकाज के लिए कर्ज
वसूली के लिए गुंडे जाते हैं, न ही कोई नोटिस ।
क्या आपको पता है कि देश के बैंकों ने सिर्फ पिछले पांच साल में 9.90 लाख करोड रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाला। इसमें से मात्र 18 प्रतिशत वापस वसूले जा सके।
81 प्रतिशत से ज्यादा की रकम एक तरह से माफ की जा चुकी है। ये कर्जमाफी उन पूँजीपतियों के लिए थी जिनसे सरकार टैक्स भी कम ले रही है, जिन्हें कर्ज न लौटाने पर थाली में सजाकर कर्जमाफी भी दी जा रही है।
भाजपा सरकार की इस अर्थनीति को ज़रा देखिए, जहाँ एक तरफ आम लोग, छोटे व्यापारी और किसान टैक्स, महंगाई और कर्ज का दंश झेलते हुए अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के चंद उद्योगपति मित्रों के लिए ऐसी नीति बनाई गई है कि उनका अरबों-खरबों का कर्ज चुटकी बजते ही माफ हो जाता है। न तो कोई वसूली का सिस्टम है, न ही कर्ज लौटाने की ज़िम्मेदारी। इस दोहरी व्यवस्था में वो आम लोग पिस रहे हैं, जो जरा सा कर्ज न चुका पाने के चलते अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं।
भारत के हर व्यक्ति पर औसतन 4.8 लाख
रुपए का कर्ज है। मार्च 2023 में यह 3.9 लाख रुपए था। बीते दो साल में इसमें 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यानी, हर भारतीय पर औसतन 90,000 रुपए का कर्ज और बढ़ गया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने जून 2025 की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोग पहले से ज्यादा उधार ले रहे हैं। इसमें होम लोन, पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड का बकाया और अन्य रिटेल लोन शामिल है। नॉन-हाउसिंग रिटेल लोन जैसे पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड बकाया में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। ये लोन
टोटल डोमेस्टिक लोन का 54.9 प्रतिशत हिस्सा है। ये डिस्पोजेबल इनकम (खर्च करने योग्य आय) का 25.7 प्रतिशत है। हाउसिंग लोन का हिस्सा 29 प्रतिशत है और इसमें भी ज्यादातर उनका है जो पहले से लोन लेकर दोबारा से ले रहे हैं।
आरबीआई के मुताबिक, भारत के कुल जीडीपी का 42 प्रतिशत कर्ज है। डोमेस्टिक लोन अभी भी दूसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से कम है, जहां ये 46.6 प्रतिशत है। यानी, भारत में कर्ज की स्थिति अभी कंट्रोल में है। साथ ही, ज्यादातर बॉरोअर्स अच्छी रेटिंग वाले हैं, यानी इनसे पैसा डूबने का खतरा कम है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि इस कर्ज से फिलहाल कोई बडा
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2025 तक भारत पर दूसरे देशों बाहरी कर्ज 736.3 बिलियन डॉलर था, जो पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत ज्यादा है। यह जीडीपी का 19.1 प्रतिशत है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा नॉन-फाइनेंस कॉरिशन्स का 35.5 प्रतिशत, डिपॉजिट लेने वाली संस्थाओं का 27.5 प्रतिशत और सरकारों का 22.9 प्रतिशत है। अमेरिकी डॉलर में लिया गया कर्ज टोटल एक्सटर्नल डेट का 54.2 प्रतिशत है।
खतरा नहीं है। ज्यादातर कर्ज लेने वाले लोग बेहतर रेटिंग वाले हैं। वे कर्ज चुकाने में सक्षम है। साथ ही, कोविड-19 के समय की तुलना में डेलिक्वेंसी रेट यानी कर्ज न चुका पाने की रेट में कमी आई है। हालांकि जिन लोगों की रेटिंग कम है और कर्ज ज्यादा है, उनके लिए थोड़ा जोखिम है। इसके साथ ही माइक्रोफाइनेंस सेक्टर (छोटे लोन ग्रुप) में कर्ज लेने वालों की एवरेज लायबिलिटी 11.7 प्रतिशत तक कम हुई है, लेकिन 2025 की दूसरी छमाही में स्ट्रेस्ड असेट्स की संख्या बढ़ी है। ल्हप् ने कहा है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां ज्यादा ब्याज दरें और मार्जिन वसूल रही है। जो कर्ज लेने वालों के लिए चुका पाना मुश्किल हो रहा है।
भारत पर बाहरी कर्ज